भागवतामृतम्
श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान श्रीकृष्ण का वाङ्गमय (शब्दमय) स्वरूप
है । भगवान जब इस धराधाम से जाने लगे तब कलियुग के मनुष्यों
के कल्याण हेतु वे स्वयं इसमें प्रतिष्ठित हो गए । इस पवित्र ग्रन्थ की
रचना भगवान के अवतार महर्षि वेदव्यासजी ने ब्रह्मर्षि नारदजी की प्रेरणा से की
। उनका मन वेदों व पुराणों की रचना करने के बाद भी खिन्न था । तब भगवान की प्रेरणा
से नारदजी उनके पास आए और कहा कि आपने
रचनायें तो बहुत की किन्तु कलियुग के विलासी जीवों का कल्याण उनसे संभव न होगा ।
अतः अब आप ऐसी रचना कीजिए जिसमें
श्रीकृष्ण की लीलायें समाहित हों जिससे उनके चंचल चित्त में भगवान की भक्ति
जाग्रत हो सके । भक्ति से ज्ञान प्रस्फुटित होगा और दोनों के मिलन से मन स्वतः
वैराग्य की ओर मुड़ जाएगा जो ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा । यही जीवन
का परमोद्देश्य है । इस प्रकार भागवत से मनुष्यों में भक्ति के साथ ज्ञान व
वैराग्य जाग्रत होता है । भक्ति के बिना ज्ञान व वैराग्य अधूरे हैं । अतः यह सब
ग्रन्थों व पुराणों का निचोड है जैसे दूध में मक्खन ।
गाँवों-कस्बों में आम जनमानस द्वारा सुनी जाने वाली भागवत कथा क्षेत्र के कर्मकाँडी विद्वानों द्वारा कही जाती है । इसका मुख्य स्रोत सामान्यतः गीताप्रेस की भागवत होती है जो मूल ग्रन्थ होने के कारण काफी विशाल व क्लिष्ट है । भागवत के मुख्य श्लोकों को उद्धृत करने से कथा में कृष्णमय रस का संचार बढ़ जाता है । इसी के साथ कथा की मौलिकता भी परिलक्षित होने लगती है । कथा साप्ताहिक होने के कारण विभिन्न प्रसंगों की कड़ियों को जोडना इसे आम जनमानस के लिए बोधगम्य बनाने हेतु आवश्यक होता है । इस रचना में इन बातों का समावेश करने का प्रयास किया गया है । आशा है कि न केवल सामान्य भागवत व्यास व कथाप्रेमी पाठक अपितु आम जनमानस भी इस कृति से लाभान्वित होंगे ।
तिथिः माघ शुक्ल एकादशी - 23 फरवरी, 2021 श्रीराम शुक्लः
Excellent book. Must read
ReplyDeleteTHANKS
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