Friday, May 21, 2021

BHAGWAT KATHA KI SARAL PUSHTAK - BHAGWATAMRITAM - भागवतामृतम् - श्रीराम शुक्लः

 


भागवतामृतम्    

श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान श्रीकृष्ण का वाङ्गमय (शब्दमय) स्वरूप है भगवान जब इस धराधाम से जाने लगे तब कलियुग के मनुष्यों के कल्याण हेतु वे स्वयं इसमें प्रतिष्ठित हो गए इस पवित्र ग्रन्थ की रचना भगवान के अवतार महर्षि वेदव्यासजी ने ब्रह्मर्षि नारदजी की प्रेरणा से की । उनका मन वेदों व पुराणों की रचना करने के बाद भी खिन्न था । तब भगवान की प्रेरणा से नारदजी  उनके पास आए और कहा कि आपने रचनायें तो बहुत की किन्तु कलियुग के विलासी जीवों का कल्याण उनसे संभव न होगा । अतः अब आप ऐसी रचना कीजिए जिसमें  श्रीकृष्ण की लीलायें समाहित हों जिससे उनके चंचल चित्त में भगवान की भक्ति जाग्रत हो सके । भक्ति से ज्ञान प्रस्फुटित होगा और दोनों के मिलन से मन स्वतः वैराग्य की ओर मुड़ जाएगा जो ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा । यही जीवन का परमोद्देश्य है । इस प्रकार भागवत से मनुष्यों में भक्ति के साथ ज्ञान व वैराग्य जाग्रत होता है । भक्ति के बिना ज्ञान व वैराग्य अधूरे हैं । अतः यह सब ग्रन्थों व पुराणों का निचोड है जैसे दूध में मक्खन

गाँवों-कस्बों में आम जनमानस द्वारा सुनी जाने वाली भागवत कथा क्षेत्र के कर्मकाँडी विद्वानों द्वारा कही जाती है । इसका मुख्य स्रोत सामान्यतः गीताप्रेस की भागवत होती है जो मूल ग्रन्थ होने के कारण काफी विशाल व क्लिष्ट है भागवत के मुख्य श्लोकों को उद्धृत करने से कथा में कृष्णमय रस का संचार बढ़ जाता है । इसी के साथ कथा की मौलिकता भी परिलक्षित होने लगती है । कथा साप्ताहिक होने के कारण विभिन्न प्रसंगों की कड़ियों को जोडना इसे आम जनमानस के लिए बोधगम्य बनाने हेतु आवश्यक होता है । इस रचना में इन बातों का समावेश करने का प्रयास किया गया है । आशा है कि न केवल सामान्य भागवत व्यास व कथाप्रेमी पाठक अपितु आम जनमानस भी इस कृति से लाभान्वित होंगे                            

तिथिः माघ शुक्ल एकादशी - 23 फरवरी, 2021                                                                                          श्रीराम शुक्लः

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