Friday, May 21, 2021

नारदजी का पूर्व चरित्र - स्व पुस्तक भागवतामृतं से


 

नारदजी का पूर्व चरित्र

नारदजी व्यासजी से अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाते हैं । कहते हैं - सत्संग से जीवन कैसे सुधरता है। निष्काम सेवाभाव से जीवन में कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है । मैं पूर्व कल्प के जन्म में दासी पुत्र था । आचार-विचार का कुछ भान न था । मैनें चार मास कन्हैया की कथा सुनी । संतों की निष्काम सेवा की  जिससे सद्गुरु की कृपा प्राप्त हुई । और जीवन बदल गया ।     

व्यासजी नारदजी से कहते हैं – कृपया अपने पूर्व जन्म की कथा विस्तार से कहिए । नारदजी बताते हैं – मैं सात-आठ साल का था जब मेरे पिता की मृत्यु हो गई । मेरी माता ब्राह्मणों की सेवा का काम करती थी । मैं बालकों के साथ खेलता रहता था । एक बार हमारे गाँव में  घूमते फिरते साधु आए । गाँव के लोगों ने उनसे चातुर्मास्य गाँव में बिताने का अनुरोध किया । मेरे पुण्य का उदय हुआ । मुझे उनकी सेवा मे रहने को कहा गया । यद्यपि मै बालक था फिर भी मन में चंचलता नही थी और कम ही बोलता था ।

संतो को कम बोलना पसंद है । बड़ो के सामने कम बोलो । कम बोलने से शक्ति संचय होती है

मैं संतों के साथ रहकर जो बनता प्रेमभाव से आज्ञानुसार उनकी सेवा करता तथा बर्तनों मे जो संतों का जूँठन बचता उसे उनकी अनुमति से खा लेता । संतों का जूँठन प्रसादी होता है और उसे उनकी अनुमति के बिना ग्रहण नही करना चाहिए । गुरूजी ने मेरा नाम हरिदास रखा।

निष्काम सेवा व सत्संग का फलः-

नारदजी कहते हैं - इस प्रकार सेवा के साथ-साथ संतों  के दर्शन व उनकी प्रसादी खाने का भी लाभ मुझे मिला । इससे मेरे सारे पाप धुल गए और मेरा हृदय शुद्ध हो गया – सकृतस्म भुंजे तदपास्तकिल्बिषः । उनके भजन पूजन को देखकर मेरी भी रुचि उसमें हो गई ।  श्रीकृष्ण की लीलाओं को सुनते-सुनते मेरी रुचि उनकी भक्ति में हो गई – प्रियश्रवस्यंग ममाभवद्रुचिः । कथा मे मुझे ऐसा आनंद आने लगा कि खेलना ही छूट गया ।        

सेवा करने वाले पर संत कृपा करते हैं । संत जिसे बार बार निहारते हैं उसका जीवन सुधरता है । जप करते समय जिस शिष्य की याद आए उसका कल्याण होता है । गुरूजी मेरी निश्छल सेवा से प्रसन्न थे । गुरुदेव की मुझपर विशेष कृपा हुई । जाते समय महात्माओं ने मुझे भगवान के श्रीमुख से कहे गए गुह्यतम ज्ञान का उपदेश दिया ज्ञानं गुह्यतमं यत्तत्साक्षात् भागवतोदितम् । वासुदेव गायत्री का मंत्र दिया । इस मंत्र का हमेशा जप करो ।

नमो भगवते तुभ्यं वासुदेवाय धीमहि ।

प्रद्युम्नाय निरुद्धाय नमः संकर्षणाय च ।।1.6.37।।

महापुरुषों ने सही कहा है कि –

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।

चत्वारि यस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् ।।

बड़ों को प्रणाम व वृद्धों की निष्काम सेवा करने से आयु, विद्या, यश व बल हमेशा बढ़ते हैं । यह बात प्रमाणिक है । निष्काम सेवा से मनुष्य जीवन में कुछ भी प्राप्त कर सकता है ।  नारदजी के पूर्वजीवन से भी  यही प्रेरणा मिलती है ।

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